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सिद्धि
वि अनध्यवसाय है। ते कहै है काहेते निर्णय कीजिये ? हेतवादरूप तर्कशास्त्र है ते तो कही ठहरै ।।। नांही । बहुरि आगम है ते जुदे जुदे है। कोई कछु कहै कोई कछु कहै तिनिका ठिकानां नांही । बहुरि सर्वका ज्ञाता कोई मुनि प्रत्यक्ष नाही ताके वचन प्रमाण कीजिये । बहुरि धर्मका स्वरूप यथार्थ सूक्ष्म है सो कैसे निर्णय
होय ? तातें जो बडा जिस मार्ग चले आये तैसें चलनां प्रवर्तनां, निर्णय होता नाही, ऐसे अनध्यवसाय है ।। सर्वार्थ
वचऐसेही मतिज्ञानरूप विना उपदेश सहजविपर्यय होय है । ताके भेद अवग्रहादि तथा स्मृति प्रत्यभिज्ञान तर्क । १ निका टी का / स्वार्थानुमानकरि पदार्थकू अन्यथा ग्रहण करनेते विपर्यय होय है। तहां स्वार्थानुमान विपर्ययरूप हेत्वाभास च्यारि प्रकार पान
है असिद्ध विरुद्ध अनेकांतिक अकिंचित्कर । सो इनिका स्वरूप परीक्षामुख न्यायदीपिकादि शास्त्रनितें जाननां । बहुरि शास्त्रके वाक्यके अर्थ करनेविर्षे विपर्यय हाये है । जैसै केई नियोगकू वाक्यार्थ कहै है । केई भावनाकू वाक्यार्थ कहै है । केई धात्वर्थकू वाक्यार्थ कहै है । केई विधिळू वाक्यार्थ कहै है । केई यंत्रारूढळू वाक्यार्थ कहै है । केई अन्यापोह कहिये निषेधकं वाक्यार्थ कहै हैं । इत्यादि वाक्यार्थविर्षे विपर्यय है । तिनिकी चरचा श्लोकवार्तिक तथा देवागमस्तोत्रकी टीका अष्टसहस्त्रीविर्षे है तहांतै समझणी ॥ बहुरि अवधिज्ञानविर्षे विपर्यय देशावधिही होय है । परमावधि सर्वावधि मनःपर्यय है ते केवलज्ञानकी ज्यौं विपर्ययरूप नाही होय है । जातें सम्यग्दर्शन विना होते नाही । ऐसै प्रमाण अप्रमाणका भेद दिखावनेकै अर्थि विपर्ययज्ञानका स्वरूप कह्या ॥
आगें, प्रमाण तो परोक्ष प्रत्यक्षरूप दोय प्रकार ज्ञानहीकू कह्या । बहुरि प्रमाणके एकदेश जे नय ते “ प्रमाणनयैरधिगमः । " ऐसा सूत्रविर्षे प्रमाणकै अनंतर नय नाममात्र कहै तिनिका निर्देश करनां । ऐसा प्रश्न होते सूत्र कहै है
॥ नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूद्वैवम्भूता नयाः ॥ ३३ ॥ याका अर्थ-- नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ, एवंभूत ऐसै ये सात नय हैं ॥ इनिका सामान्यलक्षण बहुरि विशेषलक्षण कहनेयोग्य है । तहां अनेकधर्मस्वरूप जो वस्तु ताविर्षे अविरोधकरि हेतुरूप अर्पण करनेते साध्यके विशेपका यथार्थ स्वरूप प्राप्त करनेकू व्यापाररूप जो प्रयोग करना सो नयका सामान्यलक्षण है। इहां कोई
कहै नयका सामान्यलक्षण किया सो हेतुरूपही भया, जाते साध्यकू प्राप्त करै सोही हेतु । ताकू कहिये, हेतु तौ जिस K साध्य... साधै तहांही रहै । बहुरि लक्षण है सो सर्वनयनिमें व्यापै, तातै सामान्यलक्षण हेतु नांही है । बहुरि कोई कहै,
एकधर्मकै दूसरा धर्मते विरोध है । सो धर्मके ग्राहक नयनिकै भी विरोभ है । तहां अविरोध कैसे होय ? ताकू कहिये,