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निका
15 ग्रामपर्वतादि ब्रह्मतें निपजै हैं ते ब्रम्हही हैं जुदे नाही । इत्यादि भेदाभेदविपर्यास है । जहां भेद होय तहां अभेदही || कल्पना, जहां अभेद होय तहां भेदही कल्पना, ऐसैं विपर्यय है ॥
बहुरि स्वरूपविपर्यास जैसे रूपादिक है ते निर्विकल्प निरंश हैं, इनिमें अंशभेद नांही । तथा रूपादिक बाह्यवस्तु | हैही नाही, तदाकार परिणया ज्ञानही है । ताके आलंबनरूप वाह्यवस्तु नांही है इत्यादि अन्य भी बहुत हैं । ते प्रत्यक्ष सार्थ
व चसिद्धि
अनुमान प्रमाणते विरुद्ध मिथ्यादर्शनके उदयतें कल्पना होय है ॥ बहुरि तहां श्रद्धान प्रतीति रुचि उपजावै हैं । तातें ते टी का 15 मत्यज्ञान इताज्ञान विभंगज्ञान होय हैं। बहुरि सम्यग्दर्शन है सो यथार्थ वस्तुविर्षे श्रद्धान रुचि प्रतीति उपजावै है।
। तातें तेही मतिज्ञान इरुतज्ञान अवधिज्ञान हो है । इहां विशेप कहै हैं- विपर्यय दोय प्रकार है । एक आहार्यविपर्यय
दूसरा सहजविपर्यय । तहां मतिअज्ञान तथा श्रोत्र इंद्रिय विनां अन्य इंद्रियपूर्वकै इरुतअज्ञान अर विभंगज्ञान ए तो सहजविपर्यय हैं । जाते ए परके उपदेशविनां स्वयमेव प्रवते है । बहुरि श्रोत्र मतिपूर्वक इरुतज्ञान है सो आहार्यविपर्यय है । जाते यहु परके उपदेशतें प्रवतॆ है। तहां सत्के विपें असत्का ज्ञान परोपदेशतें प्रवत है । सोही कहिये- स्वरूपते सर्ववस्तु सत्स्वरूप है । तो भी शून्यवादी असत्स्वरूपही कहै है । बहुरि ग्रहण करणेयोग्य वस्तु तथा ग्रहण करणेवाला ज्ञान दोऊ स्वरूपते सद्प है । तो भी संवेदनाद्वैतवादी एक संवेदनहीकू सत् कहै है । दूसराळू असत् ही कहै है। तथा चित्राद्वैत कहै है । तथा पुरुपाद्वैत कहै है । तथा शब्दाद्वैत कहै है । तथा वाह्यपदार्थ भिन्न है तिनिकू एक विज्ञानांडकी कल्पना करै है । बहुरि वाह्यतरंग पदार्थ सादृश्य भी है तिनिळू सर्वथाविसदृशही कहै है । वहुरि विसदृशकू सर्वथा सदृशही कहै है । बहुरि द्रव्य होतें भी पर्यायमात्र कहै है । पर्याय होते द्रव्यमानही कहै है । बहुरि द्रव्यपर्याय अभेद होते भी भेदरूपही कहै है । तथा अवक्तव्यही कहै है । बहुरि धौव्यरूप होतेही उत्पादव्ययरूपही कहै है । तैसेंही विशेपकार जीव होतें भी जीवका नास्ति कहनां बहुरि अजीव होतें भी तिसका असत्त्व कहनां । बहुरि कर्मका आस्रव होते भी ताका अभाव कहनां तैसेंही संवर, निर्जरा, मोक्ष होतें भी तिनिका अभाव कहना । ऐसेंही जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल, द्रव्यनिके होतें भी तिनिका अभाव कहनां । इत्यादि अनेक प्रकार छती वस्तूकू अणछती कहना अनेकप्रकार जाननां । बहुरि अणछती छती कहनां । जैसे पररूपादिककरि वस्तु असत्वरूप है तो भी तिसको सर्वथा सत्स्वरूप कहनां । इत्यादिक पहलै कहे तिसका उलटा जाननां ॥
बहुरि देशकालस्वभावकरि अदृष्ट जे पदार्थ तिनिवि बौद्धमतीनिकै संशय है । केई शून्य वादीनिकै पृथ्वी आदिक | तत्त्वनिविर्षे संशय है । बहुरि केईकनिकै सर्वज्ञके अस्तित्ववि संशय है । बहुरि केईकनिकै प्रलापमात्रकै आश्रयतें का