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वच
टीका
। तैसें ग्रहण करनेते होय है । जैसें मदिरादिकते उन्मत्त भया पुरुष अपनी इच्छातें जैसे तैसे वस्तुकों ग्रहण करै तैसें । मिथ्यादृष्टि भी छती अणछती भली बुरीका विशेष जान्यां विना अपनी इच्छातै ग्रहण करै है ॥ इहां सत् ऐसा तौ विद्यामानवस्तुकू कहिये असत् अविद्यामानकू कहिये । इनि दोऊनिका अविशेषेण कहिये विशेप न करै, कदा विद्यमानळू
अविद्यामान कहै, कदा विद्यमानकू विद्यमान भी कहै, कदा अविद्यमानकू विद्यमान कहै, कदा - अविद्यमानकू अविद्यमान भी सर्वार्थसिद्धि Pा कहै, ऐसे अपनी इच्छा” जैसे तैसें ग्रहणकरि कहै । तहां विपर्यय कहिये जैसे रूपादिक वस्तु छती होय तो भी कहै
निका नाही है कदा अणछतीकू भी कहै है, छती है । कदा छतीकू छती भी कहै । कदा अणछतीकू अणछती भी कहै । ऐसे पान अ.. | मिथ्यादर्शनके उदयतें अन्यथा निश्चय करै है । जैसे पित्तज्वरकरि आकुलित चित्तभ्रमवाला कदाकाल तौ माताकू भार्या
कहै, कदा भार्याकू माता कहै, कदा माताकू माता भी कहै, कदा भार्या भार्या भी कहै ऐसें अपनी इच्छातें मानै । तातें जैसाकू तैसा भी कहै है, तो ताके सम्यग्ज्ञान नाही है ॥
ऐसे मत्यादिज्ञानविय जो घटपटादिकका जैसाका तैसा ज्ञान है तो भी विपर्ययही जानना सोही कहिये हैं, कोई आत्माकैवि मिथ्यादर्शनका उदयतै परिणाम होय है । सो रूपादिकका ज्ञान नेत्रादिककरि जैसाका तैसा भी होय तौ भी तिसविषे कारणविपर्यास भेदाभेदविपर्यास स्वरूपविपर्यास ए तीन विपर्यास उपजावै है। तहां प्रथमही कारणविपर्यास... कहै है । तहां रूपादिक नेत्रादिककरि दीखै तो जैसेके तैसे दीखै, परंतु मिथ्यादृष्टि ताका कारण अन्यथा कल्पै है। जैसै ब्रह्माद्वैतवादी कहै है, रूपादिकनिका कारण एक अमूर्तिक नित्य ब्रह्मही है ब्रह्महीतै भये है । सांख्यमती कहै है रूपादिकनिका कारण अमूर्तिक नित्य है, प्रकृतितै ए उपजै है॥ बहार नैयायिक वैशेषिकमती कहै है, पृथ्वी आदि जातिभेदरूप परमाणु हैं, तिनिमैं पृथ्वीविर्षे तो स्पर्शादि च्यारि गुण है। बहुरि अप्विष गंधवर्जित तीन गुण है। बहुरि अग्निविषै स्पर्श वर्ण ए दोय गुण हैं । बहुरि वायुविषै एक स्पर्शगुणही है । ऐसै च्यारिही अपनी अपनी जातिके स्कंधरूप कार्य निपजावै है ॥ बहुरि बौद्धमती कहै है, पृथ्वी आदि च्यारि भूत है। इनिकै स्पर्श रस गंध वर्ण ए च्यारि भौतिकधर्म है । इनि आठनिका समुदायरूप परमाणु होय है। तार्क अष्टक नाम कहिये है ॥ बहुरि चार्वाकमती कहै हैं, पृथ्वी अप् तेज वायु ए च्यारि काठिण्यादि गुण, तथा द्रव्यत्वादि उष्णत्वादि, ईरणत्वादि, गुणरूप जातिभेदन लिया परमाणु है, ते पृथ्वी आदि स्कंध निपजावे है । ऐसै तौ कारणविपै विपर्यय होय है ॥ बहुरि भेदाभेदविपर्यास ऐसे हैजो, कारणतै कार्य सर्वथा भिन्नही है । जैसैं पृथ्वी आदि परमाण नित्य है तिनितें स्कंधकार्य निपजे ते सर्वथा भिन्नही है ऐसै कहै हैं । तथा गुणते गुणी भिन्नही है ऐसे कहै ॥ बहरि कारण कार्य सर्वथा अभिन्नही है । जैसै घटपटादि