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सर्वार्थ
वचनिका
पान
विपुलमति विशिष्ट जाननां । जातें जाकै विपुलमति होय ताकै चारित्र वर्धमानही होय है । ताते उलटा न आवै । बहुरि ऋजुमति ज्ञानवाला कपायका उदयतें हीयमानचारित्र भी होय है तातें उलट भी आवै, ताते प्रतिपाती भी होय है।
आगें, इस मनःपर्ययज्ञानका विशेप कह्या अवधि मनःपर्ययमैं काहेते विशेष है सो कहौ ? ऐसे प्रश्न होतें |
सूत्र कहै है - सिद्धि
॥विशुद्धि क्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमनःपर्यययोः॥ २५॥ याका अर्थ- अवधिज्ञान बहुरि मनःपर्ययज्ञान इनि दोऊनिमें विशुद्धि कहिये उज्वलता, बहुरि क्षेत्र जहां तिष्ठते । ८६ भावनिकू जानें, बहुरि स्वामी जाकै यहू ज्ञान होय सो आत्मा, बहुरि विपय ज्ञेय वस्तु इनि च्यारिके भेदते भेदविशेप 18 है । सोही कहिये हैं। मनःपर्ययज्ञानका विपय सूक्ष्म है, तातें तो अवधितै अतिशयकार विशुद्ध है उज्वल है
क्षेत्र पहली कह्याही था । सो अवधिका क्षेत्र तौ घणां है याका थोरा है । बहुरि स्वामी मनःपर्ययज्ञानका तौ प्रमत्तगुणस्थानतें ले क्षीणकपायगुणस्थानताई संयमीही होय है। तामैं भी उत्तमचारित्रवालाही होय । तामैं भी वर्धमानचारित्रवालाही होय है । तामें भी सप्तविध ऋद्धिमैसूं कोई ऋद्विधारी होय ताहीकै होय है । अन्यकै नाही होय । बहुरि तिनिमें भी कोईकै होय है सर्वही ऋद्धिवारीनिकै न होय है । बहुरि अवधि है सो च्यारीही गतिके जीवनिकै होय है। ऐसे स्वामीके भेटते इनिमें भेद है । बहुरि विपयकी अपेक्षा भेद है सो आगें कहसी ॥
आगें केवलज्ञानका लक्षण कहनेका अवसर है । ताकू छोडि ज्ञाननिका विपयका नियम विचारिये है। काहेत ? जातें केवलज्ञानका स्वरूप दशम अध्यायमै “ मोहक्षयात् " इत्यादि सूत्र कहसी । जो ऐसे है तो आधके मति इरुत दोय ज्ञान तिनिका विषयनियम कहा ? ऐसे प्रश्न होते सूत्र कहै है
॥ मतिश्रुतयोर्निवन्धो द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु ॥ २६ ॥ याका अर्थ- मति इरुत इनि दोऊ ज्ञाननिका विषयका नियम द्रव्यनिकैविर्षे केईक पर्यायवि है, सर्वपर्यायविपै नाही है ॥ तहां निबंध कहिये विपयका नियम । इहां कोई कहै विपयका कैसे जान्या ? विपयशब्द तौ सूत्रमैं नाही ॥ ताक्रू कहिये- विपयशब्द पहले सूत्रमै कह्या है सो लेना, ताकै विभक्ति भी लगाय लेणी । बहुरि द्रव्येषु ऐसा बहवच| नतै सर्वद्रव्य जीव पुद्गल धर्म अधर्म आकाश काल ग्रहण करने । तिनके असर्वपर्याय कहिये केईक पर्याय लेने । ऐसे