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और उनके सिद्धान्त । के विकारों को दूर कर उसे नीरोग बना देना भी कोई सरल बात नहीं है । श्रीमहाप्रभुजीने भी अपना अवतार धारण कर इस जाति को नीरोग किया था। नहीं तो ऐसे बिकट समय में न जाने यह जाति कहां जाती इसकी किसे खबर थी १ वह समय कितना भीषण था उसका एक चित्र स्वयं महाप्रभुजी ने भी अपने कृष्णाश्रय में खींचा है आपने स्वयं जो कुछ लिखा है उस से हमें उस समय की परिस्थिति का अच्छा ज्ञान हो जाता है आप लिखते हैं “ इस कलियुग में ईश्वर की प्राप्ति करने के सर्व मार्ग नष्ट हो चुके हैं लोगों ने पाप और पाखण्ड का आश्रय ले रक्खा है ऐसे बिकट समय में जीव की रक्षा भगवान् श्रीकृष्णके सिवाय और कौन कर सकता है ? देश में सर्वत्र मुसलमानों का अत्याचार हो रहा है तथा पाप की प्रवृत्ति धीरे २ बढती ही जाती है। ऐसे समय में सजनों के लिये बडा दुःख होता है किन्तु प्रतीकार भी कुछ नहीं सूझता इसी लिये उनको भी भगवान् श्रीकृष्णकाही भरोसा करना पडता है । गङ्गादिक जितने तीर्थ हैं वे सब मुसलमानों से भ्रष्ट कर दिये गये हैं। पवित्र तीर्थों का नाम भी बदल दिया गया है, काशी अब बनारस हो गया है और प्रयाग अब अल्लाहावाद बन गया है । इस लिये तीर्थों के देवता भी मुसलमानों के अत्याचार को