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श्रीमद्वल्लभाचार्य देख कर अपने २ धामको चले गये हैं। ऐसे समय में हमारी रक्षा तो भगवान् श्रीकृष्ण ही करें तो करें नहीं तो हमारा रक्षक कोई नहीं है । इतनी ही दुर्दशा क्यों अव तो अच्छे आदमी भी खूब अभिमानी होते चले गये हैं और उन्हें भी म्लेच्छों की आज्ञानुसार ही रहना पड़ता है तथा वे भी अपने को एक अलग दल का समझ लोगों पर विविध भांति का अत्याचार करते हैं ऐसे समय हमारे रक्षा करने वाले श्रीकृष्ण के सिवाय और कोई भी रक्षा नहीं कर सकता । घोर कलियुग का पदार्पण हो रहा है सब प्रकारके पुण्य लोगो के मन से अपनी जगह खाली करते जा रहे हैं। जप, दान, तप, वृत, होम और स्वाध्याय सब नष्ट हो गये हैं और पाखण्ड अपना साम्राज्य बढा रहा है ऐसी परिस्थिति में मेरी गति तो भगवान् श्रीकृष्ण ही हैं"।
देखिये, उस समय की देशकाल की स्थिति का कितना मार्मिक और यथार्थ चित्र है ! और कितने वेदना पूर्ण और दीन शब्द हैं ! इस चित्र को हमने आपके सन्मुख इस लिये रक्खा है जिससे कि आप उस समयका अनुमान कर सकें जब कि इस देश में महाप्रभुजी ने अपना ब्रह्मवाद स्थापित किया था। उस समय, उस मझधार में डूबती हुई जनता का भगवद्वदनकमलावतार के सिवाय कौन आश्रय हो सकता था १ अतएव आपने भूतल पर पधारने का कष्ट उठाया और जनताको भगवान् श्रीकृष्ण की प्रेम भक्ति का मार्ग बताया।