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और उनके सिद्धान्त । आचार्य-प्रादुर्भाव
ऐसा था अवतार भूमिपरमरणासन्न तृषार्त मनुज को पय पूरित सर प्राप्त हुआ। दारुण पीडा पीडित जनको धन्वन्तरि सम प्राप्त हुआ। उत्कट योगाभ्यासी नर को इच्छित वर सम प्राप्त हुआ। उत्कट विरही गोपीजन को माधव साक्षात्कार हुआ।
दुःखराशि के मेघ हटा कर सुखसूरज सम उदित हुआ। चिर उत्कण्ठित चातक मन को अपना प्रणयी विदित हुआ। राहु ग्रसित उस पूर्ण चन्द्र का मानो अभ्युत्थान हुआ। भक्तजनों का प्रेम उदधि अव मिलनेको यों उमड पडा ॥
अति भीपण स्वप्नों से व्याकुल मन था जगका डरा हुआ। अति मनमोहक कृष्ण चित्र को देखा तब वह शान्त हुआ। अतिकष्टों से जर्जर तनु में नव रस का संचार हुआ। अति दरिद्र भूखे इस तनु को उत्तम भोजन प्राप्त हुआ।
कृपणो ने कार्पण्य दोष को सत्वर मन से भुला दिया। अलसो ने आलस्य दोष को अपने तनु से विदा किया ।। वीर वरो ने अपनी असि को क्षण भरको विश्राम दिया। ध्यान मग्न 'व्रजनाथ' लवो में क्षण को ध्यान विसरडाला ||