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________________ श्रीमद्वल्लभाचार्य जिस समय आपश्री के ग्रन्थों का अवलोकन किया श्रीमतलभा. जाता है उस समय आपकी जीवों पर की गई चार्य के कृपा का बोध होता है । आपश्रीने अगाध ग्रन्थरत्न परिश्रम उठा कर जीवों के उद्धार के लिये अमूल्य ग्रन्थरत्नों का प्रणयन किया है। जो लोग आपके चरित्रों के समय जीवित थे उस समय आपश्रीने उनका अपने स्वरूप बल से उद्धार किया और इसी के लिये आपने तीन समय पृथिवी की प्रदक्षिणा की थी। किन्तु जिनने आपके चरित्रों का आस्वादन नहीं किया उनके लिये आपश्री, अपना ही दूसरा स्वरूप, अपने ग्रन्थों को यहां पर पधरा गये । भगवान् श्रीकृष्ण जिस प्रकार अन्तर्हित हो कर श्रीभागवत में विराजते हैं उसी प्रकार श्रीमहाप्रभु भी अपने रचित ग्रन्थों में साक्षात् बिराजमान हैं। __ आचार्यश्री विरचित ग्रन्थों के दो प्रकार से विभाग हम करते हैं । एक विभाग में आपके स्वतत्र प्रणीत ग्रन्थों को रखते हैं और दूसरे में प्राचीन ग्रन्थों पर आपने किये विवरणात्मक ग्रन्थों को रखते हैं। स्वतन्त्र ग्रन्थो में षोडश ग्रन्थ, निबन्ध और पत्रावलंबन मुख्य हैं। जिस समय आचार्यश्रीने अडेल में निवास करना प्रारंभ किया उस समय मायावादी पंडित गण तथा मीमांसक
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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