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________________ ४६ श्रीमद्वल्लभाचार्य चारों तरफ अशान्ति का साम्राज्य फैला हुआ था । किन्तु इस अशान्ति में ही लोगों ने एकाएक शान्ति का आविर्भाव हुआ देखा । लोंगों ने देखा कि एक अनतिदीर्घकाय अत्यन्त तेजस्वी महापुरुष उनके दुःख का प्रती - कार करने आ रहा है । दूरसे देखने पर वह एक साधारण मनुष्य दिखलाई देता था किन्तु उसमें अपने तेजके बल से अमित शक्ति थी । और यही थे श्रीमद्वल्लभाचार्य | आपके शुद्धाद्वैतवादने अपने विश्वबंधुत्व के सन्देश के साथ एकताकी प्रणाली के आधार पर हिन्दूजाति के विखरे हुए अङ्गों को संघशक्ति में अनुस्यूत कर देने का वह उच्च और परमपुनीत आदर्श प्रकट किया जिस से हिन्दू जाति में संजीवनी शक्ति आ पहुंची । किसी नई वस्तु का निर्माण करना यदि कार्य कुशलता है तो बिगडी हुई चीज को फिर से नई बनाकर काम में आने लायक बना देना उस से कहीं बढकर कार्य कुशलता है । भगवान् शंकराचार्य ने जब समस्त जगद्व्यापी बौद्ध धर्म का उन्मूलन कर बीजरूप से स्थित सनातन धर्म का पुनरुज्जीवन किया था तो भगवान् श्रीवल्लभाचार्य ने भी मृतप्राय हिन्दूजाति को धर्म का अपूर्व संदेशा सुना संजीवनी बूंटी दे जीवित कर दिया था इस में आश्चर्यकी बात नहीं है । नूतन बालक की उत्पत्ति कर देना यदि सरल नहीं है तो मृतप्राय मनुष्यों
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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