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और उनके सिद्धान्त ।
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देशका सौभाग्य सूर्य उस समय अस्त हो रहा था और साना हिन्दूजनता की धार्मिक नौका भी जीर्ण समय देशका शीर्ण हो डूब रही थी। राज्य में क्या, समाज
वातावरण में क्या, धर्म में क्या और रीति नीति में क्या, उस समय सब में ही एक प्रकार का भयंकर विप्लव मच रहा था। सब लोग ऐहिक सुख साधन, और अपने २ सुख में मस्त हो रहे थे । कोई किसीकी न तो सुनता था और न कोई किसी को कुछ कहने ही का साहस करता था । समस्त देश पशुवल से आक्रान्त था और जरा २ सी बात पर तलवार चल जाती थी। उस समय हिन्दू समाज की दशा अत्यन्त शोचनीय हो उठी थी। सुसलमान लोग एक हाथ में तलवार और दूसरी में कुरान लियें घूमा करते थे। तथा विविध विधियो से हिन्दू को मुसलमान बनाते फिरते थे । हिन्दू समाज उस समय नेता से हीन हो गया था । न तो उसे कोई धार्मिक नेता ही मिलता था और न सामाजिक या नैतिक ही। उस समय बडी बुरी तरह से एक ऐसे अच्छे धार्मिक नेता की आवश्यकता थी जो इस अभागी हिन्दू जाति की डूबती हुई धर्म रूपी नौका को पार लगा दे। हिन्दुओं की दशा उस आसन्न मृत्यु रोगी की जैसी हो गई थी जो पीयूषपाणि वैद्यराज को देखने के लिये अत्यन्त उत्कण्ठित हो रहा हो।