________________
४४
श्रीमद्वल्लभाचार्य चिर और सती कीर्ति को छोडकर श्रीमदाचार्यचरणने वावन वर्ष की अवस्था में इस भूतल को छोडा । धर्म के विषय में जो २ कुछ परमतत्त्व था, तत्त्वविद्या के विषय में जो भी कुछ उत्तमोत्तम विद्या थी और भक्तिशास्त्र के विषय में जो भी कुछ मूल्यवान वस्तु थी उस सब का बोध दे महाप्रभु अन्तर्हित हो गये । नन्दन कानन का पारिजात पुष्प मानों टूटकर गिर गया ! समृद्धिवान जौहरी की दुकान पर से उसका सबसे प्रियरन मानों कोई ले गया ! अथवा मानों विशाल और मधुर बाग में से कोयल अपना मोहक स्वर छोड उसे सूना कर उड गई!
श्रीमहाप्रभुने जिस समय यह भूतल छोडा उसका वर्णन देखिये एक पाश्चात्य विद्वान भी क्या करते हैं । डाक्टर विल्सन लिखते हैं-"अपने अवतार के हेतु को पार लगा कर श्रीमद्वल्लभाचार्यजी ने काशीजी में हनुमान घाटपर श्रीगंगाजी में प्रवेश किया। पानी में उतरते २ आप इतने उतर गये कि अन्त में जलने आपको अदृष्य कर दिया। जल के जिस भाग में आपने प्रवेश किया था उस भाग के उपर एक चकचकित ज्वाला स्तंभ दृष्टिगोचर हुआ । और हजारों मनुष्यों के आश्चर्य के बीच श्रीमदाचार्यचरणने उस ज्वालास्तंभ द्वारा वैकुण्ठके तरफ प्रयाण किया । और आकाश में जाते २ अदृश्य हो गये ।”