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और उनके सिद्धान्त।
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विवाह पछि भी आपने जिसकार्य को संपादन करने के लिये अवतार धारण किया था उसे तो करते ही रहै । विवाह के अनन्तर ही आपने अपने मार्गके प्रदर्शक बहुतसे बडे ग्रन्यों का निर्माण किया था। कभी २ वे उपदेश देने के हेतु भी बाहर चले जाते और लोगोंको अपने अमृततुल्य उपदेशों से कृतार्थ करते । आपने अपने जीवन का बहुत सा समय गया और बनारसके समीप आये हुए चरणाद्रि और अडेल नामक सुन्दर ग्रामों में व्यतीत किया था । आपका रहन सहन वहत ही सादा और अनुकरणीय था । आप समस्त दिन भगवान की परिचर्या मे व्यतीत करते थे। उस से जो कुछ भी समय बचता था उसे आप शास्त्रालोचन में व्यतीत करते । भगवान में आपकी पूर्ण भक्ति और निष्ठा थी। आपको अहंकार तो मानो छू तक नहीं गया था। आप सर्वत्र समानभाव रखने वाले थे। और लोगों पर असीम दयाकी वृष्टि करने वाले थे। जहां जहां आप बोध देते लोग आपके वचनों पर मुग्ध हो उसी क्षण आपके अनुयायी हो जाते थे। जिस प्रकार मेस्मरज़म या जादू से लोग वश हो जाते हैं उसी प्रकार आपकी वाणी सुन लोग मोहित हो जाते । आप आचरणशील गुरु और आचार्य थे।
मक्तियुक्त अत्यन्तही सरल जीवन व्यतीत कर, और असीम कीर्ति का उपभोग कर के एवं अपने पीछे अपनी