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________________ श्रीमद्वल्लभाचार्य ___ इस अद्भुत मेधावी ब्राह्मण कुमार ने अपनी ग्यारहवर्ष की अवस्था ही में अपना अभ्यास पूर्ण करडाला ! समस्त वेद, वेदाङ्ग, उपनिपद्, पुराण, स्मृति, इतिहास दर्शन इत्यादि आकर ग्रन्थों का मनन पूर्वक अभ्यास उस समय पूर्ण किया जव कि साधारण मनुष्य अपनी उस अवस्था __ में कुछ लिखना पढना सीखने लगता है ! भाग्य वश इसी वर्ष आपके पिता ने गौलोक प्राप्त किया । यह बहुत ही ठीक हुआ कि आपके अभ्यास क्रम में इनके पिताने इनको न छोड दिया । नहीं तो आपको न जाने कितनी वाधाएं सहन करनी पडती । आपने अपने अध्ययन कालकी समाप्ति कर अपने ब्रह्मवाद को सर्वव्याप्तकरने का दृढ निश्चय किया । और इस निश्वय को कार्यरूप में परिणत करने की इच्छासे आपने विद्वानों के दुर्ग और सरस्वती के विहार स्थान श्रीकाशीक्षेत्रमें अपने ब्रह्मवाद का उपदेश देना प्रारंभ किया । आपका उपदेश देने का ढंग बडा रोचक और कुतूहलवर्धक है । अपने ब्रह्मवाद की स्थापना करने के अर्थ वे कभी किसी चलती हुई गाडीपर चढ जाते और जहां विद्वानों का घरहोता वहां आप अपने ब्रह्मवादका व्याख्यान देते हुए निकल जाते थे ! कभी विद्वानों के घरके सामने वाली छत्तपर खडे हो जाते और अपने ब्रह्मवाद का मण्डन करते । सायंकाल श्रीगंगाजीके तटपर जिस समय विद्वान लोग सायं संध्या करते उस समय महा
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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