________________
और उनके सिद्धान्त।
निरवयव और सावयव विचारमें भी यही बात है। श्रुति ही ब्रह्मको साकार कहती है और श्रुतिही ब्रह्मको निरवयव कहती है । यहां भी श्रीशंकराचार्यका कहना है कि मुख्य ब्रह्म निरवयव ही है, गौण ब्रह्म साकार है। अर्थात् अविद्याकल्पित ब्रह्म तो साकार है और मुख्य ब्रह्म निराकारही है । इस मतमें भी तर्कको बलवत्ता और वेदको दुर्वलता आती है। किन्तु श्रीमद्वल्लभाचार्यका मत है कि ब्रह्मसाकार भी है निराकार भी। दोनो तरहका वेदमें कथन है इसलिये दोनो तरहका मानना ही आचार्य का काम है । वेदव्यास भी 'श्रुतेस्तु शब्दमूलत्वात् ' इस सूत्रमें ब्रह्मको साकार मानते हैं । और उस अपने मतमें वेदकी आज्ञाको ही कारण बताते हैं तर्कको नहीं । किन्तु श्रीशंकराचार्य प्रभृति अपने अपने मतमें 'अविद्याकल्पितरूपभेद, नामक तर्कको प्रधानमानकर वेदको गौण मानते हैं । यहां भी श्रीमद्वल्लभाचार्यने 'अचिन्त्यैश्वर्य' और 'अलौकिकसामर्थ्य' रूप विचारके द्वारा साकार कहनेवाली और निराकार कहनेवाली श्रुतियोंकी संगति बैठाई है । इसतरह ग्रन्थ दृष्टिसेमी आचार्यश्री आचार्यपदके मुख्य भाजन हैं । ___ भगवद्गुण दो प्रकारसे आते हैं एक प्रभुके दान करनेसे, दूसरे प्रभुके आनेसे उनके गुणभी आते हैं । सत्यशौचादि असंख्यगुण भगवान् में नित्य और सम्पूर्णरूपसे रहते हैं ।