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________________ और उनके सिद्धान्त । १७ ब्रह्मवादपूर्वक प्रभुके अनन्यप्रेम का ही सम्पूर्णशास्त्र साक्षात् और परंपरासे वर्णन कर रहे हैं । इस वैदिक सिद्धान्त पर सबकी सङ्गति श्रीमद्वल्लभाचार्य श्रीके मतमें ही हो सक्ती है । किसीके मतमें ब्रह्मवाद विषयमें वेद असङ्गत रह जाते हैं तो किसीके मतमें शुद्ध भक्तिके विषयमें वेद असङ्गत रह जाते हैं। श्रीमद्वल्लभाचार्यजीने विद्वान् और आचार्य, राजा और राजकीय जनता, सबकी सभाके बीच ब्रह्मवाद और शुद्ध भक्तिमार्ग दोनोमें सम्पूर्ण वेद और वैदिक शास्त्रोंकी संगतिका स्थापन किया । श्रीमद्वल्लभाचार्य श्रीका यह चरित्र शास्त्रसंदेह निरासक है । प्रचारचरित्रमें षोडशग्रंथ निर्माण, निबंधनिर्माण, और पृथ्वी परिक्रमा हैं । जो लोग कहते हैं कि वेदमें भक्तिमार्ग नहीं है उनकी मूर्खता दिखाने के लिये मैने अपने छान्दोग्योपनिषद् के भाष्यमें यह स्पष्ट दिखा दिया है कि उपनिषदों में आद्योपान्त भक्तिमार्गका ही प्रवचन है । इस तरह इतिहास और आचायोंके चरित्रसे मैने आप लोगोंको यह दिखा दिया कि आचार्यशब्दका प्रवृत्तिनिमित्त एक श्रीमद्वल्लभाचार्यश्रीमें ही संगत होता है । अर्थात् आचार्यत्वका सम्पूर्ण मान यदि किसीको हो सक्ता है तो एक श्रीमद्वल्लभाचार्यश्रीको ही है । तुलनात्मक विवेचन करनेमें वडा समय अपेक्षित है इसलिये छोड दिया है ।
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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