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________________ श्रीमद्वल्लभाचार्य किसीको इसमें सन्देह रहै वह मुझसे प्रश्न करै में उसे समझानेको तैयार हूं। और इस ब्रह्मवादस्थापनसे काशीपति विद्याके अधिपति श्रीविश्वनाथ मेरे ऊपर प्रसन्न हों।" यह पत्रावलंबन ग्रंथ काशीमें विश्वनायके मंदिरपर लटकाया गया । यह ग्रंथ छप चुका है जिस विद्वान्को देखना हो देखसक्ता है । श्रीमदल्लचार्यश्रीके स्वभावमें आडम्बरप्रियता या अपने वैदुष्यके दिखानेकी वृथा चेष्टा करना बिलकुल नहीं था। जितना प्रयोजन और जितना अवश्य अपेक्षित था उतने ही वैदुष्यका प्रकाशन किया । और वहभी भगवदाज्ञासे । श्रीमद्वल्लभाचार्यश्रीके समयमें वेदोपनिषदोंपर व्याख्यान, गीता पर व्याख्यान, वेदादि आस्तिक शास्त्रोंका प्रामाण्यस्थापन, और भक्तिमार्गका प्राकट्य हो चुकाथा अत एव आपने इनविषयोंपर विशेष कुछ लिखना व्यर्थ समझकर छोडदिया। और कह दिया कि 'वेदप्रामाण्यं तु प्रतितन्त्रसिद्धत्वान्न विचार्यते'। किन्तु वेदके अर्थ करते समय जो अपने तरफसे लोगोने कुछका कुछ कर दिया था उसका निरास करना तो अवश्य अपेक्षित था इसलिये ब्रह्मसूत्रोंका भाष्य, अनीश्वरवाद हटानेके लिये मीमांसासूत्र भाष्य, और भक्तिमार्गके शुद्धस्वरूपका प्राकट्य करनेके लिये श्रीमद्भागवतकी सुबोधिनी विवृत्ति किंवा भाष्य बनाया । इन ग्रंथोमें सम्पूर्णवेद और वैदिक शास्त्रोंकी एक सङ्गति लगाई गई है।
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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