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और उनके सिद्धान्त । सभामें आचार्य और वेदवेदाङ्गके धुरंधर विद्वानोके मध्यमें समग्रवादियोंकों अपने सिद्धान्त, शास्त्र और वेदयुक्तियोंके द्वारा मान्य कराकर सवकी सम्मतिसे श्रीमद्वल्लभाचार्यने आचार्यसिंहासनकी प्राप्ति की थी। कितनेही दिन पर्यन्त वादकर वेद, व्याससूत्र, गीता और भागवत इन चार प्रस्थानोसे वैदिक ब्रह्मवादका स्थापन किया था। एक उस दिन ही नहीं किन्तु अपने जीवनका सम्पूर्ण अंश, श्रीमद्वल्लभाचार्यश्रीने ब्रह्मवाद और भक्तिके शुद्धस्वरूपका स्थापन और वैष्णव सम्प्रदायकी दृढता स्थापन करनेमेही व्यतीत किया । एक बखत नहीं, तीन बार समग्रमारतकी परिक्रमा देकर वैदिक ब्रह्मवादका प्रचार किया। इस बातका, पुरातन बैठकें, और वहांके पुरातन लेखपत्र, और उस समयके जनसमाजकी लिखी पुस्तकें गवाही दे रही हैं । प्रचारकार्यसे जब जब आपको समय मिला और आप जितने समय अपने घरपर अडेलमें (प्रयाग) पधारते तब तब समीपमें काशीमें शास्त्रकी चर्चा होती । जब वहां पूरी न होती तो विद्वान् लोग उनके स्थानपर आकर वाद करते । तव आचार्यश्रीने सबके सुभीतके लिये काशीमें जाकर यह पत्र लिखा । समग्रवेद, "व्याससूत्र, गीता, और श्रीभागवत इन चारों प्रस्थानोंसे इसतरह ब्रह्मवादकी ही स्थापना होती है और इसीतरह सम्पूर्ण शास्त्रोंकी सङ्गति वैदिक सिद्धान्तमें होती है। जिस