________________
श्रीमद्वल्लभाचार्य ।
यह मैने इतिहास और चरित्र दृष्टिसे कहा है अब में गुण और ग्रंथ दृष्टिसे कुछ कहना चाहता हूं ।
१८
श्रीमद्वल्लभाचार्यश्रीके ग्रंथ देखने में थोडे हैं । अणुभाष्य, सुवोधिनी, तत्वदीप निबंध, पोडशग्रंथ और स्फुट ग्रंथ । ये ग्रन्थ प्रायः सम्पूर्ण मिलते हैं । श्रीमद्भागवत सूक्ष्मटीका, पूर्वमीमांसाभाष्य, प्रभृति ग्रन्थ कुछ भाग मिलते हैं । ग्रन्थ थोडे होनेका मुख्य कारण यह है कि आचार्यश्रीने कोई नवीन मत नहीं निकाला है । जो मत वैदिक हैं और प्रचलित थे उन्ही में जो त्रुटियां आगई थीं उन्हें दूर करना ही आचार्यों का मुख्य कार्य था । और इस लिये आचायको थोड़ा ही लिखना पड़ा । किन्तु उसका प्रचार करनेमें श्रम विशेष करना पडा । जो सिद्धान्त पूर्वकाल में फैलचुके थे और जिनका लोगोंको अभ्यास हो चुका था उनकी त्रुटि शोधकर उन्हे शुद्धरूपमें प्रसिद्ध करना अवश्य कठिन है । और इसी लिये उन्हें तीनवार भारतमें चारों तरफ परिभ्रमण करना पड़ा था ।
श्रीमद्वल्लभाचार्यश्री के ग्रंथ विचाररूप हैं तर्करूप नहीं । विचार साधार है अत एव मीमांसा कहाजाता है । तर्क निराधार है अत एव अनुमान कहा जाता है । मीमांसा के आधार वेद और वैदिक शास्त्र हैं । और तर्कका आधार बुद्धिके सिवाय कुछ नहीं । मीमांसाका