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________________ और उनके सिद्धान्त । आप प्रकट हो जायगा । किन्तु सत्यकथनमें इतिहास और उनके ग्रन्थोंका आश्रय लेना ही कर्तव्य है। श्रीमद्वल्लभाचार्यश्रीक मत पर जितने आक्षेप किये जाते हैं सब झूठे हैं। केवल द्वेषमूलक हैं और बेसमझीसे किये गये हैं। नई रोशनीवाले जितना कुछ लिख गये हैं सब आर्यसमाजकी नकल है । उन्होने अपनी समझसे कुछभी नहीं लिखा है । 'पुष्टिमार्ग अने महाराजोनो पंथ' नामक लिखनेवाला अपने आपको 'एक वैष्णव' लिखता है किन्तु यह उसका धोखा देना है । तिलक या कंठी होनेसेही वैष्णव नहीं हो सत्ता । वैष्णव धर्मोंका जो आचरण करनेवाला हो, वैष्णवशास्त्रको जो पूज्य मानता हो श्रीमद्वल्लभाचार्यश्रीमें जिसकी पूर्ण भक्ति हो और फिर तिलक कंठी धारण करता हो वह वैष्णव हो सकता है । इस पुस्तक लिखनेवालेमें वैष्णवताकी तो गंधमी नहीं है किन्तु एक सभ्य और आस्तिक मनुष्यमें जो धर्म भावना होनी चाहिये वहमी नहीं है । लोगोंको घोखोमें डालनेके लिये मंगलाचरणमें कुछ मायावादकी झलक दिखाता है किन्तु पक्का आर्य समाजी है । श्रीमद्वल्लभाचार्यके चरित्रमें जैसे दयानंदने गप्प लगाई है इसीतरह इसनेमी एक एक अक्षर झूठा लिखा है। सत्यार्थप्रकाश और ये पुस्तक लेकर बैठ जाय और देखलें कहांतक सत्य कहता हूं । इस पुस्तकमें मङ्गलाचरण
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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