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________________ १२ श्रीमद्वल्लभाचार्य और प्रमाण वल प्रधान होनेसे वेदविरुद्ध वातोंका लेशभी नहीं होसक्ता । और इसी लिये श्रीमद्वल्लभाचार्यने आचार्य या गुरुके लक्षणमें नरम् ' पद दिया है । अवतारमें कहीं नर पद नहीं आता । यदि कहीं आता है तो वहां माया या कपट शब्द अवश्य रहता है । जहां ऐसा नहीं होता वहां विद्वान् टीकाकार अवश्य लगा देते हैं । ___ यहांतक हमने आचार्य शब्दका अर्थ और उसके साथमें जितनी मुख्य मुख्य अपेक्षित बातेथीं कहदीं अब इस बातका विचार करना है कि यह सब बातें और गुण श्रीमद्वल्लाचार्यमें हैं या नहीं। __ श्रीमद्वल्लभाचार्यमें भगवत्व आचार्यत्व और भगवद्गुण थे इसके सिद्ध करनेके लिये उनका इतिहास और उनके ग्रन्थ ही प्रमाणकी जगह लेने पड़ते हैं । यद्यपि कितने ही यह कहसक्ते हैं कि इसमें पक्षपातकी संभावना है किन्तु हमें इस विषयमें और उपाय ही नहीं है । मेक्समूलर कैसा था, बुद्धभगवान् कैसे थे श्रीशंकराचार्य कैसे थे ये यदि विचार करना पडे तो वे वे इतिहास और उनके ग्रन्थोंको प्रमाणभूत माननेही पड़ेंगे । पक्षपात एवं अपक्षपाततो विचारककी वाणीसे अपने आप स्पष्ट हो जाता है। श्रीमद्वल्लभाचार्यश्रीका महत्व वर्णन करते समय यदि मुझे पक्षपात होगा तो वह मेरी वाणीके द्वारा विद्वानोंको अपने
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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