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श्रीमद्वल्लभाचार्य 'स्वर्गकामो यजेत' (स्वर्गकी कामना करने वाले को यज्ञ करने चाहिये) इत्यादि श्रुतियों के अनुसार स्वर्ग आदि की कामना से यज्ञादिक करे । भगवदर्थक यज्ञ करने से अन्याश्रय नहीं होता।
७–प्रत्येक वैष्णव को 'ब्रह्म संबंध' ग्रहण करना अत्यन्त आवश्यक है। ब्रह्मसंबंध विना जीव में सेवा का अधिकार नहीं आ सकता । ब्रह्मसंबंध के अनन्तर प्रत्येक कार्य ईश्वर में समर्पण कर के करना चाहिये । इसी प्रकार प्रत्येक वस्तुका उपभोग भी भगवान् के अर्पण कर के करना चाहिये । ईशावास्योपनिषद् में कहा है
ईशावास्यमिदं सर्व यत्किच जगत्यां जगत् । तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ।।
अर्थात्-यह जगत् ईश्वरमय है । सब में ईश्वर का निवास है इस लिये भगवान् में सब वस्तु का समर्पण कर के अपने उपभोग में ले । इस में लालसा कभी न रक्खे । यह धन किसी का भी नहीं है । धनादि सर्व पदार्थ ईश्वर के हैं । पर वस्तु में लालसा रखना उचित नहीं।।
८-प्रभु के पास कभी किसी चीज की भी याचना नहीं करनी, क्यों कि प्रभु सर्व समर्थ हैं। हमारे मन की सब बात जाननेवाले हैं । हम लोग ही ईश्वरेच्छा को नहीं जान सकते । इस लियें यदि हमने कोई बात की याचना