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और उनके सिद्धान्त ।
अर्थात्-जब मुझ गोपीजनवल्लभ में विश्वास है तो फिर तुम कृतार्थ हो । तुम्हें कोई चिन्ता करनी नहीं चाहिये। ___ जो लोग अपना घर, स्त्री, पुत्र, धन और प्राण सव भगवान् में समर्पण कर प्रभु में विश्वास रखते हैं उन को भगवान् कभी नहीं छोडते; यह निश्चय है।
वैष्णवों के कर्तव्य तीन प्रकार के हैं । आधिदैविक, आध्यात्मिक और आधिभौतिक । भगवान् के निमित्त ही जो कार्य किये जाते हैं वे आधिदैविक हैं, वेदानुकूल जो धर्म हैं वे आध्यात्मिक हैं और जो देह सम्बन्धि हैं वे सब आधिभौतिक कर्तव्य कहलाते हैं।
६-शास्त्र की आज्ञा प्रत्येक वैष्णव को माननी चाहिये। उन में कहे गये वर्णाश्रमधर्म का भी पालन सदा करते रहना चाहिये । स्पर्शास्पर्श में विचार रखना चाहिये । पात्रशुद्धि और भक्षामक्ष के विषय में मी शास्त्र मर्यादानुसार कर्तव्य करना चाहिये । यह सर्वथा उचित नहीं है कि वैष्णवलोग शास्त्रीय कर्म की उपेक्षा करें । शास्त्रीय कमाँ को भगवदर्थक समझ कर ही करना चाहिये। __ जो लोग यह समझते हैं कि शास्त्रकी सभी बातें मानने से तो अन्याश्रय भी हो जायगा तो यह उनकी मूल है। वास्तव में कहाजाय तो गायत्री आदि के जपसे अन्याश्रय नहीं होता । अन्याश्रय तब तो होता है जब कि