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और उनके सिद्धान्त। ___ की और प्रभु को उसे देने की इच्छा न हुई और न दी तो इस से वृथा ही दुःख होता है और भक्ति में बाधा आती है।
९-देहधर्मों से, भगवद्धर्मों पर विशेष प्रीति होनी चाहिये।
१०-जीव प्रभु के सर्वथा आधीन है इस लिये अभिमान का सर्वथा परित्याग करना वैष्णव को उचित है।
११-वैष्णव को हठाग्रह का सर्वथा परित्याग करना योग्य है । करज कर के भी सेवा इत्यादि करते रहना महान् मूर्खपन है। भगवान् इस से कभी प्रसन्न नहीं होते।।
१२-देह पर, समय २ पर जो जो दुःख पडें उन्हें धैर्य पूर्वक सहना चाहिये । जिस प्रकार माखन निकाल लेने पर छाछ सत्वहीन हो जाती है उसी प्रकार देह को भी जान कर, दुःख को सहन करना चाहिये । दुःख सहने में जड भरत का आदर्श सन्मुख रखना चाहिये। जिस प्रकार उन नैं समस्त दुःख धैर्य पूर्वक सहे उसी प्रकार जीव मात्र को दुःख सहना चाहिये । प्रातः काल ही उठ कर निम्न लिखित श्लोकों का उच्चारण करेश्रीगोवर्धननाथपादयुगलं हैयंगवीनप्रियं नित्यं श्रीमथुराधिपं शुभकरं श्रीविट्टलेशं मुदा । श्रीमद्वारवतीशगोकुलपती श्रीगोकुलेन्दं विभुं श्रीमन्मन्मथमोहनं नटवरं श्रीवालकृष्णं भजे ॥