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और उनके सिद्धान्त। __ 'कापट्ये न तु सेवायां फलम् ।'
अर्थात्-भगवान् में कपट करने से सेवा का कुछ भी फल नहीं मिल सकता । संसार के विषयो में जिन का मन फंसा हुमा है उन को निरोध की प्राप्ति असम्भव है । संन्यास निर्णय में कहा है
विषयाक्रान्तदेहानां नावेशः सर्वथा हरेः ।
अर्थात् जिसका मन विषयों से घिरा हुआ है उस के मन में ईश्वरीय शुद्ध और उंचे विचारों का प्रवेश नहीं हो सकता।
इस प्रकार भगवान् में श्रेष्ठत्व का अनुभव कर के अमत्सर हो भगवान् की भक्ति करे । निरोध प्राप्ति का यह सरल मार्ग है । निरोध प्राप्ति के ये भी उपाय हैं
हरिमूर्तिः सदा ध्येया संकल्पादपि तत्र वै । दर्शनं स्पर्शनं स्पष्टं तथा कृतिगती सदा ॥ श्रवणं कीर्तनं स्पष्टं पुत्रे कृष्णप्रिये रतिः । पायोर्मलांशत्यागेन शेषभागं तनौ नयेत् ॥
अर्थात्-संकल्प के द्वारा भी हरिमूर्ति का सदा ध्यान करना चाहिये । इसी प्रकार उस हरिमूर्ति में स्पष्ट और साक्षात् पुरुषोत्तम विराजते हैं ऐसी भावना कर के दर्शन और स्पर्श करना चाहिये । और भक्त को उचित है कि वह यही भावना रख कर अपनी कृति और गति रक्खे ।