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और उनके सिद्धान्त । जव सर्वशक्तिमान् ईश्वर के गुण अथवा धर्म भक्त के हृदय में प्रवेश करते हैं तव वे गुण अथवा धर्म उसे संसारिक विषयों के विषय में स्थिर वैराग्य उत्पन्न करने वाले हो जाते हैं । ईश्वर के गुण अथवा धर्मों के स्पर्श से भक्तजन को कभी भी दुःख भोगना नहीं पड़ता। यह स्थिति जीवन्मुक्त जिसे कहते हैं उसकी पहली दशा है।
जिनको निरोध अभी तक प्राप्त हुआ नहीं है किन्तु भविष्य में वह प्राप्त हो ऐसी आशा हो ऐसे जो मिश्र पुष्टिभक्त हैं उन के लिये निरोध प्राप्ति का उपाय आचार्य श्री ने यों बतलाया है
संसारावेशदुष्टानां इन्द्रियाणां हिताय वै । कृष्णस्य सर्ववस्तूनि भूम्न ईशस्य योजयेत् ।।
अर्थात्-संसारावेश दुष्ट इन्द्रियों के हित के लिये मुम्न ईश (विराट् पुरुष के मी ईश्वर) श्रीकृष्ण के विषय में सब वस्तुओं को योजन करना चाहिये। ___ मनुष्यों की इन्द्रियां संसार के विषयों में फंसी हुई हैं उन्ही को इत्तर विषयो मे से हटा कर भगवान् श्रीकृष्ण में लगानी चाहिये । इस प्रकार धीरे २ निरोध सिद्ध हो जाता है।
पुष्टिमार्ग में 'निरोध' शब्द वडा महत्व रखता है । "निरोध" श्रीमद्भागवत के दशमस्कन्ध मे निरोध' का की व्याख्या वर्णन किया गया है।