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NABY-RRBARAT
“निरोध"
प्रपंच अथवा जगत् की विस्मृति होकर भगवान् श्रीकृष्ण में जो आसाक्त होती है उसे निरोध कहते हैं। सेवा, श्रवण, कीर्तन और स्मरण का मुख्य हेतु निरोध प्राप्त करने का है। पुष्टिमार्ग का सच्चा फल भगवान् श्रीकृष्ण में निरोध होना है । निरोध की तीन कक्षा हैं । प्रेम, आसक्ति और व्यसन । प्रेम अर्थात् भगवान् के विषय में निरुपधि स्नेह । भगवान् के माहाल्य का ज्ञान होने से उन पर प्रेम उत्पन्न होता है । यही प्रेम जब खूब बढ जाता है तब संसार के पदार्थों पर से स्नेह उठ जाता है और धीरे २ संसारिक वस्तुओं की विस्मृति हो कर भगवान् के विषय में दृढ और निरुपाधि स्नेह उत्पन्न हो जाता है । मन की इस स्थिति को आसक्ति कहते हैं। ___ सर्व शक्तिमान् ईश्वर सम्बन्धीय विचारो में मन सर्व रीत्या पुह जाय और ईश्वर बिना जब एक क्षण भी दुःखद होने लगे अथवा भगवान् बिना जब कुछ भी अच्छा न लगे उसे व्यसन कहते हैं।