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________________ २४८ श्रीमदल्लभाचार्य काल में भी प्रभु को गद्दर धराना, उनके सम्मुख सिगडी रखना इत्यादि उपचार किये जाते हैं। ऋतुके अनुसार प्रभु के सुखका विचार कर जो जो उपचार किये जाते हैं उसे सख्य भक्ति कहते हैं। ९-आत्मनिवेदन-देह, पुत्र, स्त्री, धन और इतर प्रिय पदार्थों के सहित अपने आपको ईश्वर के आधीन-समर्पण कर देना आत्मनिवेदन है। श्रीमद्वल्लभाचार्य मतानुयायी वैष्णवों के यहां सर्वत्र यह नवधा भक्ति करने में आती है । सेवा के अनवसर में, अर्थात् जिस समय श्री पोढ रहे हों उस समय श्रीभागवत श्रीसुबोधिनीजी तथा और भगवन्नामों का श्रवण किया जाता है । यह श्रवणाभक्ति है । ऐसे ही अनवसरों में अथवा सेवा समय में भी संस्कृत एवं प्राकृत कीर्तनों का गान किया जाता है क्यों कि गान विद्या यहां उद्वेग का नाश करनेवाली मानी गई है । यह कीर्तन भक्ति हुई । नित्य नियम के समय शरणमन्त्र, समर्पणमन्त्र तथा भगवान्नाम का पुनः पुनः आवर्तन करने का यहां सदाचार है । यह स्मरण भक्ति है । भगवन्मन्दिर में सोहिनी प्रभृति से संमार्जन करना भगवत्प्रसादी वस्त्रों को धोना, रंगना और मंगला से लेकर शयन पर्यन्त सब सेवा पादसेवन सेवा है। पंचामृतलान, अधिवासन, सङ्कल्प, देवोत्थापन तथा इन सबों के मन्त्रोचारण, धूप, दीप, शङ्खोदक आदि उपचार
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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