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________________ २४६ श्रीमद्वल्लभाचार्य तान हो जाय-सर्वतः भगवान् का ज्ञान होने लगे या भगवान् विना एक क्षण भी न रहा जाय तब जानना कि मानसी सेवा सिद्ध हुई । उस समय जीव का कर्तव्य है तो भगवान् , धर्म है तो भगवान् और गति है तो भगवान् । सब भगवन्मय हो जाता है। भगवान् के सिवाय कहींकिसी भी जगह किसी का भी ज्ञान ही न रहना उत्तमोत्तम सेवा की सिद्धि होना माना गया है । ऐसी सेवा जिसे प्राप्त हो वह धन्य है । वह मनुष्य नहीं देवताओं से भी अधिक शक्तिशाली और भाग्यवान है। सेवा का मूल और प्रमाण श्रीमद्भागवत है। श्रीमद्भागवत में बाह्य सेवा नौ प्रकार की लिखी गई है। श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनं । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ ___ अर्थात्-भगवान् की,श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, __ अर्चन, वन्दन, दास्य, सख्य और आत्म निवेदन यह नौ प्रकार की भक्ति (सेवा) है। ___ यह नवधा भक्ति ही प्रभु को प्रसन्न करने के लिये समर्थ है। १-श्रवणाभक्ति-प्रभुमक्त के मुख से प्रभु के जन्मादि चरित्र, भगवन्नाम तथा भगवत्स्तोत्र पाठादिकों का ध्यान और श्रद्धापूर्वक श्रवण करने को श्रवणा भक्ति कहते हैं । प्रभु में अनुराग उत्पन्न करने का यह प्रथम साधन है । प्रभु और लीलाओं का, अवधारण पूर्वक श्रवण प्रथमा भक्ति है।
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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