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श्रीमद्वल्लभाचार्य शिष्यों सहित उपस्थित हुए । महाराज ने उन्हें सादर में नार्थ निमन्त्रित किया और वे भी इसे स्वीकार कर आवर कृत्य करने नदी पर चले गये । बहुत देर हो गई फिर दुर्वासा नहीं आये । यहां अम्बरीष बडे धर्मसङ्कट में प पारणा की अवधि बीती जा रही थी । वहुत उहापोह अनन्तर अम्बरीष ने केवल जल का एक आचमन कर पारणा की रक्षा कर ली । जब क्रोधी दुर्वासा को यह मालुम हुई तब वे अपने आपेसे बाहर हो गये । वो 'अरे, देखो तो इस नृपंस का साहस । इस श्रियोन्म ब्राह्मण को भोजन कराने से पहिले ही खा पी लिया ! ठह अभिमानी, तुझे मैं इसका फल शीघ्रही चखाता हू ।' कह अपनी एक शिखा को तोड उसे जमीन पर पटव पटक ने के साथ ही बड़ी घोर कृत्या उसमें से पैदा हु किन्तु राजा इस से जरा भी न डरे । ब्राह्मण का कोपर शिरसा वन्ध करने के लिये अपना हरिपदरजरंजित : अवनत कर दिया । किन्तु सुदर्शन चक्र ने जब दे कि भगवान् का एक निर्दोष भक्त संकट में फंस रहा तब उन से रहा न गया और कृत्या को उसी समय नष्ट दुर्वासा के पीछे पडे । दुर्वासा बड़े संकट में पडे । संकट से त्राण पाने, वे सर्वत्र गये पर उनकी कहीं भी । न हुई । यहां तक कि सुदर्शन से अपना पिंड छु