SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और उनके सिद्धान्त। २३७ वे ब्रह्मा और महादेव के पास भी गये पर वे भी इस संकट से उनकी मुक्ति करने को समर्थ न हुए । अन्त में सर्वलोक शरण्य भगवान् श्रीकृष्ण के चरणारविन्दों में जा कर गिर पडे और इस संकट से उवार ने की प्रार्थना करने लगे। भगवान् ने उनको स्वस्थ कर कहा 'ब्रह्मन् , आपकी इस सङ्कट से रक्षा में भी नहीं कर सकता । मै तो भक्त के पराधीन हूं। जिनने अपने घरद्वार, पुत्रकलन यहां तक कि अपने प्राणों को भी मेरे अर्पण कर दिया है, आप ही बतलाइये में उनके परित्याग करने का साहस कैसे कर सकता हूं। जो लोग मेरी शरण आ गये हैं, जो लोग मुझ में ही निर्वद्ध हृदय हैं, वे मुझे अपनी एकान्त अनुरक्ति से उसी प्रकार प्रसन्न कर लेते हैं जिस प्रकार साध्वी अपने पति को । ब्रह्मन् , और तो में क्या कहू, मेरे भक्त ही मेरे हृदय हैं और मै भी उन्हीं का हृदय हूं । मेरे सिवाय दूसरे को वे जानते नहीं हैं और न में ही उन के सिवाय दूसरों का ध्यान रखता हूं। अब जहां से भय आया है उसी के शरण जाओ। वही तुम्हारी रक्षा करेगा।' निदान अम्बरीष ने ही उनके संकट को दूर किया । यह है एक पुष्टिभक्त की भक्ति का एक साधारण उदाहरण जहां भगवान् भी भक्त के वश हो जाते हैं। यह उच पुष्टिभक्ति है। किन्तु ऐसे भक्त अत्यन्त दुर्लभ हैं।
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy