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________________ और उनके सिद्धान्त । ___ २३५ नाना प्रकार की भ्रष्ट पाते सुनाते हैं और राजा लोग जिसे बड़े चाव से सुनते हैं, महाराजा अम्बरीष के यहां ऐसे झूठे प्रशंसक और विलासी मित्रो के स्थान में भगवदीय भक्त एकत्र हो भगवदीय वार्ता महाराज को सुनाते और महाराज भी अतृप्त हो उसे सुनते । जहां राजा लोग अपने नेत्रों के उपयोग का पद पद पर दुरुपयोग करते हैं, उन की शक्ति कामिनी और काञ्चन मे ही पर्यवसित कर देते हैं, वहां महाराजा अम्बरीष भगवान् के दर्शन मे आंखों को लगा उन के जन्म को सार्थक करते । इनकी भक्ति से प्रसन्न हो भगवान् ने अपने पार्शद सुदर्शनचक्रको इन की रक्षा के लिये नियुक्त किया था । कहने का तात्पर्य यह कि वे मनसा वाचा और कर्मणा भगवान के परम भक्त थे। वे राज्य का शासन तो करते थे किन्तु अपने को राजा नहीं समझते थे। वे तो यही समझते मानो भगवान् ने इन्हें अपना राज्य चलाने को अपना एक भ्रत्य नियुक्त किया है। मानो वे प्रभु के एक तुच्छ दास थे जो भगवान् की आज्ञा से राज्य का संचालन करने भूतल पर आये थे। ___ एक समय की बात है महाराजा अम्वरीप ने द्वादशी विद्धा एकादशी का व्रत किया था। दूसरे दिन के पारणा के अन्तिम काल में देवेच्छा से भगवान् दुर्वासा अपने साठ हजार
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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