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और उनके सिद्धान्त ।
२३३ अर्थात्-अपने धर्म के अनुसार घर में रह कर संसार में से मन हटा कर भगवान् का श्रवण और कीर्तन के द्वारा तथा तनुजा वित्तजा के द्वारा निष्काम भजन करे। अपने कार्य को करता हुआ भी भगवान् में से मन न हटाये । इस से, भगवान् में पहले प्रेम होगा, फिर आसक्ति होगी और अन्त में व्यसन हो जायगा । ऐसी दशा पर जो भक्ति होगी वह कभी छूटेगी नहीं और उसका वीज ऐसा दृढ हो जायगा कि जो कभी भी नष्ट न होगा। ___ वीज भाव को दृढ करने का उपाय यह है कि भगवान् में अत्यन्त विश्वास रक्खे और उन के सामर्थ्य को क्षण मात्र के लिये भी न भूल जावे । भगवान् की सेवा, भगवान् के गुणगान और भगवान् के कथाश्रवण से मिली होनी चाहिये। जिस से प्रेम, आसक्ति और व्यसन प्राप्त हों । प्रत्येक क्षण दुःसंग का त्याग करते हुए सत्संग का सेवन करते रहना चाहिये । ऐसे भक्त पर भगवान् सदा प्रसन्न रहते हैं और संसार की कोई भी विरुद्ध शक्ति उसे हरा नहीं सकती । इस बात का एक दृष्टान्त यहां दिया जाता है। ___ पूर्व समय में, सप्तद्वीपपति महाराजा अम्बरीप नामके एक परम भागवत सार्वभौम हो गये हैं। उनकी अतुलनीय सम्पत्ति और वैभव को देख, धनाकर कुवेर और महामहा वैभवशाली इन्द्र तक उन से ईपी करते थे । यदि इतनी