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श्रीमदल्लभाचार्य
सिद्धीरपुनर्भवं वामय्यर्पितात्मेच्छतिमद्विनान्यत्।' अर्थात् जिननें अपनी आत्मा को मेरे अर्पण कर दी है वे मेरे सिवाय और किसी की भी इच्छा नहीं रखते । इसी को शुद्ध पुष्टि भक्ति कहते हैं। ___ अब हम भक्ति को दृढ करने का उपाय बताते हैं । भक्ति को बढाने का उपाय आचार्यों ने इस प्रकार बतलाया है
यथा अक्तिः प्रवृद्धास्यात्तथोपायो निरूप्यते। बीजभावे दृढे तु स्यात्त्यागाच्छ्रवणकीर्तनात् ॥
अर्थात्-बीज भाव के दृढ होने से भक्तिभाव की दृढता होती है । इस बीज भाव के दृढ करने के दो उपाय हैं । गृह त्याग किंवा अहंता ममता का त्याग और श्रवण तथा कीर्तन । प्रभु के माहात्म्य का श्रवण और कीर्तन करने से अहंता ममता की निवृत्ति होती है और भगवान् में स्नेह बढता रहता है । अब प्रश्न यह होता है कि इस बीज की दृढता कौन से उपाय से होती है। इस का निराकरण यह हैबीजदार्यप्रकारस्तु गृहे स्थित्वा स्वधर्मतः । अव्यावृत्तो भजेत्कृष्णं पूजया श्रवणादिभिः॥ व्यावृत्तोपि हरौ चित्तं श्रवणादौ सदा यतेत् । ततः प्रेम तथासक्तिर्व्यसनं च यदा भवेत् ॥ बीजं तदुच्यते शास्त्रे दृढं यन्नापि नश्यति ॥