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________________ और उनके सिद्धान्त। २३१ आप की अभयदायिनी चरण की शरण में आया है। नाथ ! इसकी रक्षा कीजिये । रक्षा कीजिये" । तव विश्वात्मा दयासागर का दयासागर खल वला उठा । यह अशक्य है कि अत्यन्त व्यसनग्रस्त हो, सच्चे अन्तःकरण पूर्वक और एकनिष्ठा से भगवान् को कोई पुकारे और भगवान् न सुने ? इस संकट ग्रस्त गज की आर्त वाणी सुन दीन दयालु भगवान् अस्थिर हो उठे और उसी समय आकर गजराज का उद्धार कर दिया ! इसी को कहते हैं भक्तिमार्ग की विजय । भगवान् भक्ति और दैन्य से ही वश होते हैं यश, श्री, वैभव, वल कुछ भी प्रभु को प्रसन्न करने में काम नहीं आता । इस बात का एक साधारण निदर्शन उपर्युक्त दृष्टान्त में भली भांति हम देख आये । भगवान् को हम अपने बल और पराक्रम से वश नहीं कर सकते क्यों कि उनमें स्वयं में हजार २ भीमों का बल मौजूद है। __जब भगवत्प्रेम अत्यन्त उच्च कोटि पर पहुंच जाता है, तब भगवद्भक्त भगवान् के विना अथवा भगवान् की सेवा के अतिरिक्त और किसी भी पदार्थ की इच्छा नहीं करता। भगवान् की सेवा के आगें उसे सब कुछ तुच्छ लगने लगता है। उस के लिये तो भगवान् और भगवत्सेवा ही परमानन्द दायक हैं। ऐसे भक्तों के लिये कहा है-'न योग
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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