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________________ और उनके सिद्धान्त । २२९ ग्राह से जब अपना कुछ भी वश न चला और जब गजराज खिंचता ही चला गया तव उसने अपनी कातर दृष्टि एक बार अपने संबंधियों के तरफ डाली ! देखा-उसकी हथिनिये अपने पति को इस संकट में भयंकर रीति से फँसा हुआ देख कर खडी २ रो रही हैं । विचारी अवला थीं । वे क्या कर सकती थी। जन सहस्त्र-सहन हाथी का वल रखने वाला उनका पति ही कुछ नहीं कर सकता तो वे विचारी साधारण बलशालिनी क्या कर सकती थीं ? उस के जितने वन्धुवान्धव थे वे सब उसे बलपूर्वक बाहर खींचने का प्रयत्न करते थे। किन्तु उनका सर्व प्रयत्न व्यर्थ होता था। गजेन्द्र ने जब यह देखा तो उसे वडा दुःख हुआ और एकबार फिर अपने वल का संचय कर ग्राह से लड़ने लगा। उनकी इस लड़ाई में एक हजार वर्ष व्यतीत हो गये किन्तु विजय श्री ने किसी के भी गले में वर माला न पहनाई । स्थलचर होने से गजेन्द्र का वल जल में क्षीण हो चला और जलचर मकर का बल प्रतिक्षण वर्धमान होने लगा । अव गजेन्द्र का प्राणसंकट उपस्थित था । भागने को जगह नहीं थी। चारों ओर अथाह जल पड़ा हुआ था और लडने की सामर्थ्य शेष हो चली थी। उसके गात्र शिथिल हो गये थे और दम उखड रहा था। उसने विचारा-'ओह में कैसा मूर्ख हूं। मुझे अपने बल का अपार विश्वास है । हाय, आज वह मेरा विश्वविश्रुत गौरव और बल कहां गया ? अव
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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