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श्रीमद्वल्लभाचार्य उसका परिवार भी इसका यथोचित उत्तर देता । हाथिनी मनोरंजन करने के लिये कभी गजेन्द्रके सिरपर लता और गुल्म तोड २ कर डालतीं तो कभी २ फूलों के ढेर को उसके मस्तक पर उडेल देतीं । उसके छोटे २ बच्चे कभी उसकी जांघो में लिपट जाते तो कभी २ पकडे जाने के भय से अपनी माके पीछे छिप जाते । करिवर उनकी इस चाल पर हँसते।
जलक्रीडा करते २ बहुतसा काल व्यतीत हो गया किन्तु यूथपति अपने इस मनोरंजन से न विरत हुए और न आनेवाले संकट को ही वे देख सके। भगवदिच्छावश गजेन्द्र को इस प्रकार सरोवर में निरंकुश क्रीडा करते देख एक ग्राह को अत्यन्त रोष आगया । वह गजेन्द्र की इस क्रीडासक्ति को देख अत्यन्त क्रोधायमान हो उठा और गजराज के समीप पहुंच उसके पैर को पकड़ कर वेग पूर्वक खींचने लगा । गजराज अपने बल पर गर्व करता था । उसने एक बार तो ग्राह को ठोकर मार पछाड देने की इच्छा की। किन्तु जब यह इच्छा फलवती न हुई तब गजेन्द्र बलपूर्वक ग्राह से युद्ध करने लगा। किन्तु इस युद्ध में उसका कोई भी बल काम न आया । जिसकी गन्ध मात्र से बडे २ हिंस्र वनचर भाग जाते थे आज वही अलौकिक बलशाली करी मकर से परास्त होता हुआ अपने आप को देखने लगा ! उस अमित बलशाली