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________________ और उनके सिद्धान्त । २२५ अर्थात्-हे प्रकाशयुक्त भगवन् ! आपके भक्त दुस्तर संसार समुद्र को भक्तिरूप आप के चरणारविन्दों के द्वारा स्वयं अच्छी प्रकार पार पहुंच कर, जीवों पर अनुग्रह करने वाले होने से, आपके चरणारविन्द रूप भक्ति मार्गात्मक नाव को यहां रख कर, परम पद को प्राप्त हुए हैं। भक्तिमार्ग रूपी नाव यहां महापुरुष रख गये हैं। उस का आश्रय लेने वाला विना आयास ही संसार समुद्र को, भीषण होने पर भी, तिर जाता है। क्यों कि उस मार्ग के प्रवर्तकों पर आपका अनुग्रह है। ___ इस लिये जो भगवान् के चरण की शरण लेते हैं वे निर्वल हों तो भी बलवान् हैं और भविष्य में वे वडे २ सिद्ध, चारण, गन्धर्व और विनायकों के मस्तक पर पैर रखकर निर्भय होकर विचरण करते हैं क्यों कि उन पर आपका पूर्ण अनुग्रह होता है। जो लोग अनन्य हो कर रात्रि दिन भगवान् में ही अपने मन को रखते हैं अथवा जिनका व्यसन ही भगवान् श्रीकृष्ण हो गया हो वे संसार को बिलकुल दुस्तर नहीं मानते और इस महार्णव को उसी प्रकार पार कर जाते हैं जिस प्रकार बछडे के खुर के चिन्ह को मनुष्य अनायास ही उलांघ जाता है। जो लोग अपने आश्रय पर अकेले ही गर्व करते हैं । जो लोग भगवान् की मदद नहीं चाहते हुए ही सिद्धि
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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