________________
२२४
श्रीमदल्लभाचार्य
प्रोयतेऽमलया भत्त्या हरिरन्यद्विडम्बनम् ।
अर्थात्-भगवान् श्रीकृष्ण, भक्त की निहतुक, निर्मल से ही प्रसन्न होते हैं । उन को और प्रकार से प्रसन्न की चेष्टा व्यर्थ है। जिनके पास लक्ष्मी दासी हो कर करती है उन को क्या कोई लोभ दे कर प्रसन्न कर स है ? जिसके पास अनेक रत्न और अनेक सुन्दर २ सिंह इत्यादि है वह क्या अपनी इन वस्तुओं के द्वारा भर को वश कर सकता है ? उन के पास तो कौस्तुभ र ही एक ऐसा है जो जगत् की सर्व सम्पत्तियों क मूल्य नहीं हो सकता। अपनी तुच्छ वस्तु से क्या प्रसन्न हो सकते हैं ? न विद्या पर, न धन पर, अं बल पर, भगवान् प्रसन्न हो सकते हैं, भगवान् प्रसन्न हो सकते हैं तो केवल भक्ति से ही । जीव का कुछ काम नहीं आता । वह तो साधन रहित एक अ दयापात्र कीट है । उसके पास साधन बल कुछ नहीं उसका तो साधन दीनता है, भगवद्भक्ति है और ईश्व चरणो में सतत प्रणाम है। भगवद्भक्त भगवानके चरणों के उद्धारक समझता है । श्रीमद्भागवत में भी कहा है
स्वयं समुत्तीर्य सुदुस्तरं द्युम
न्भवार्णवं भीममदभ्रसौहृदाः। भवत्पदाम्भोरुहनावमत्र ते निधाय याताः सदनुग्रहो भवान् ॥