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“निर्गुणा भक्ति"
सब से उत्तम भक्ति निर्गुणा भक्ति है। यहां हृदय में कुछ भी कामना नहीं रखकर, केवल अपना परम कर्तव्य समझकर भगवान् की प्रेम पूर्वक सेवा की जाती है। पुष्टिमार्ग में यही सेवा प्रचलित है । इसका लक्षण यह हैमद्गुणश्रुतिमात्रेण मयि सर्वगुहाशये। मनोगतिरवच्छिन्ना यथा गङ्गाम्भसोम्बुधौ ॥ __ भगवान् देवहूति से कह रह हैं कि मेरे गुणों के श्रवण मात्र से सर्वान्तर्यामी मुझ में, प्रतिबन्धों से रहित अविच्छिन्न मन की गति का होना निर्गुणा भक्ति का लक्षण है। ___ इस श्लोक की, श्रीवल्लभाचार्य निर्मित, भागवत की टीका श्रीसुबोधिनीजी में लिखा है
'सर्वगुहाशये मयि भगवति प्रतिबन्धरहिताऽविच्छिन्ना या मनोगतिः पर्वतादिभेदनमपि कृत्वा यथा गंगाम्भोम्बुधौ गच्छति तथा लौकिकवैदिकप्रतिबन्धान्दूरीकृत्य या भगवति मनसो गतिः'।