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श्रीमद्वल्लभाचार्य
सत्ता सबों के विचार, वृत्ति और कर्मों पर चलती है । इस कारण से भक्ति भी जो अंतःकरणकी एक वृत्ति हो जाती है वह चार प्रकार की होती है । तामसी भक्ति, राजसी भक्ति, सात्विकी भक्ति और निर्गुणा भक्ति । पुष्टिमार्ग में निर्गुणा भक्ति के द्वारा प्रभुकी सेवा की जाती है । इस निर्गुणा भक्ति के ऊपर, उपर्युक्त प्रथम तीनों गुणों की सत्ता नहीं चलती। ___ तामसी भक्ति का वर्णन श्रीमद्भागवत के तृतीयस्कन्ध के २९ वे अध्याय के आठवें श्लोक में किया है
अभिसन्धाय यो हिंसां दम्भं मात्सर्यमेव वा। संरम्भी भिन्नदग्भावं मयि कुर्यात्स तामसः॥ अर्थात्-जो मनुष्य किसी को मारने के हेतु, कपट करने के हेतु अथवा परोत्कर्ष को नहीं सह सकने से, दूसरे को पीडा पहुंचाने के हेतु, भेददृष्टि से भगवान् का भजन करते हैं वे तामसी भक्त हैं और ऐसी भक्ति को तामसी भक्ति कहते हैं।
राजसी भक्ति के लिये वहां ही दूसरा श्लोक हैविषघानभिसन्धाय यश ऐश्वर्यमेव वा । अर्चादावर्चयेद्यो मां पृथग्भावः स राजसः॥
अर्थात् जो लोग विषयों की इच्छासे, अथवा यश की इच्छा से, अथवा ऐश्वर्य की इच्छा से, भेद रख कर भग