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और उनके सिद्धान्त। २१७ अथवा काम कहते हैं । जो सुख दुःख स्पर्श मात्र से रहित है, नित्य, निरतिशय और अगणित है उसी आनन्द का नाम अलौकिक सुख किंवा अलौकिक आनन्द है। इस नित्य निरतिशय अलौकिक आनन्दानुभव को ही भगवान् कहते हैं । वैष्णव मात्र को इसी पुरुषार्थ के लिये प्रयत्न करना चाहिये।
अभ्यासार्थ प्रश्न
पुरुषार्थ किसे कहते हैं ? मोक्ष क्या है ? पुष्टिमार्गीय मोक्ष कौनसा है ?