________________
पुरुषार्थ
--
-
पुरुष जिसे चाहे उसे पुरुषार्थ कहते हैं । यह पुरुषार्थ साक्षात् और परम्परा से चार प्रकार का है । धर्म, अर्थ, काम
और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ हैं । दुःख का एकदम न रहना ही मोक्ष कहा जाता है । नित्य तथा अगणित और निर्दुःख सुखप्राप्ति का ही नाम आनन्दप्राप्ति किंवा भगवत्राप्ति है। दुःखाभाव और सुख प्राप्ति इन दोनों की सर्वजीव इच्छा रखते हैं इसलिये इन दोनों को साक्षात्पुरुषार्थ कहा है। धर्म करनेसे दुःख दूर होता है इस लिये वह भी पुरुष को अपेक्षित है । अतः धर्म भी पुरुषार्थ है । अर्थ के विना धर्म हो नहीं सकता इस लिये अर्थ भी पुरुषार्थ है । किन्तु धर्म और अर्थ दोनों परम्परा से पुरुषार्थ हैं । किन्तु साक्षात् पुरुषार्थ तो दुःखाभाव और सुख प्राप्ति ही है ।सुख प्राप्ति भी अनेक प्रकार की है किंतु मुख्य दो प्रकारकी गिनी गई है। एक दुःख से मिली हुई सुख प्राप्ति और दूसरी दुःखस्पर्श से रहित सुखप्राप्ति । तीनों लोक में जितना सुख है वह दुःख से मिला हुआ है और अनित्य है। इसी से उसे लौकिक सुख