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और उनके सिद्धान्त।
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वान् की पूजा करते हैं वे राजस भक्त हैं और ऐसी भक्ति को राजस भक्ति कहते हैं। तीसरे श्लोक में सात्विक भक्ति का निरूपण हैकर्मनिर्हारमुद्दिश्य परस्मिन्वा तदर्पणं । यजेद्यष्टव्यमिति वा पृथग्भावः स सात्विकः ॥ अर्थात्-जो लोग सब कर्मों और पापों का नाश करने के लिये भगवान् की सेवा करते हैं । अपने कर्मों को ईश्वर के अर्पण करने से ईश्वर प्रसन्न होंगे यह सोच कर जो लोग अपने कर्मों को ईश्वर में अर्पण करते हैं ऐसे भेद दृष्टिवाले भक्त को सात्विक भक्त कहते हैं और ऐसी भक्ति सात्विक भक्ति कहलाती है।
अभ्यासार्थ प्रश्न! भक्ति क्या है ? सात्त्विक, राजस और तामस भक्त कौन हैं ?
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