________________
और उनके सिद्धान्त । १९७ सोच रहा है १ किन्तु ऐसा नहीं होता इस लिये यह मानना भी ठीक नह है। ___ जब जीव में ब्रह्म का आनन्दांश प्रकट होता है तब उसे सब कुछ अपरोक्ष हो जाता है । वेदों में कहा है । 'ब्रह्म विद् ब्रायैव भवति ।' यह ब्रह्मत्त्व आनन्दांश के अमिव्यक्त होने से होता है । सर्व अप्राकृत गुणों का और परस्पर विरोधी धर्मों का आश्रय होना आनंदांश का धर्म है । जीवका चैतन्य गुण प्रकाश करनेवाला है और इसी गुण के कारण उसे तेजोमय ज्योति कहा जाता है । यह ज्योति ब्रह्म की है। __ जीव में रूपादि का अभाव है। यही कारण है कि प्राकृत इन्द्रियों से उसका ग्रहण नहीं हो सकता । इन्द्रियां बाहर की ओर गमन करने वाली हैं इस लिये वे अन्तरात्मा को नहीं देख सकतीं । जीव को देखने के साधन तीन प्रकार के हैं योग, दिव्यदृष्टि और ईश्वर का अनुग्रह ।।
यह जीव प्रभुका ही अंश है । गीताजी में कहा है'ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः । इस श्लोकाध में प्रभु ने जीव को अपना अंश स्वीकृत किया है। चिदंश से जीव की व्यक्ति हुई है । यह जीव शास्त्र में दो प्रकार का गिना गया है । जगत् म आने से और प्राणाध्यासादि (भूलकोही अध्यास कहते हैं) आजाने से उसे