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श्रीमद्वल्लभाचार्य सर्वान्कामान् । सह ब्रह्मणा विपश्चिता ॥ "ब्रह्म को जिसने जान लिया वही ब्रह्म को प्राप्त करता है"। 'सत्यं शिवं सुन्दरं सुप्तं' ऐसे ब्रह्म को जिसने जान लिया वह ब्रह्म के साथ सर्व कामों का उपभोग करता है । किन्तु ब्रह्म को जान लेना ही बडा दुरूह है। ब्रह्म माया के परदे में ढंका रहता है। इसी लिये जीव के लिये वह दुर्लक्ष्य है। ___३-"ब्रह्म अपरिमेय और अज्ञेय है । दुर्गम्य भी है किन्तु अनुग्रहैक गम्य भी वही हैं।"
भाष्य-शास्त्रों को और वेदों को जिननें पढा है कि वेदो में ब्रह्म कितना अपरिमेय और अज्ञेय है । ब्रह्म की इयत्ता करने में शास्त्र भी अपनी सामर्थ्य नहीं रखते । बडे बडे ऋषि मुनि गण भी जिसके जानने में हजारों वर्ष की समाधि लगाते हैं किन्तु जिसे बे जान नहीं सकते ऐसा ब्रह्म अपरिमेय और अज्ञेय है । नारद प्रभृति महामहा मुनीश्वर जिसके जानने के लिये तरसा करते हैं वेही भगवान् व्रज में बहुत ही सरल रीति से जाने जा सके हैं । यह है भगवान् का अनुग्रहैकगम्य होना । शास्त्रों में लिखा है कि ब्रह्म के डर से सूर्य उदय होता है । उसी के डर से वायु चलता है और उसी के इशारे से सब देवता अपने अपने कार्य करते हैं । और तो क्या जिसका उपसेचन (लगावन ) मृत्यु है वही ब्रह्म अनुग्रह के वश हो