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और उनके सिद्धान्त । १८९ नंदरानी से बद्ध हुआ भी व्रज में कभी विराजता है। क्या कहें-शेष, महेश, सुरेश, गणेश, दिनेश प्रभृति देवाधिदेव जिनकी अशेष मुख हो रात्रि दिन स्तुति किया करते हैं, जिनके लिये वेद और शास्त्र, पुराण और इतिहास, दन्तकथाएं और विविध कथानक अपरिमेय, अचिन्त्यमहिमाशाली और अद्भुत शक्तिशाली बताते हैं वे ही ब्रह्म व्रज में आकर एक अंजलि छाछ के लिये गोपियों के आगे नृत्य कर रहे हैं! क्या कहें ? किसके आगे कहें ? हमारी यह बात कैसे मानी जायगी कि वही वेदों का सर्वसामर्थ्य सम्पन्न ब्रह्म व्रज में एक थोडेसे दही के लिये मा को बुलाता हुआ रो रहा है ! यह सव विना भगवान् की कृपा के कहाँ साध्य है । श्रुति भी स्पष्ट कह रही हैं
नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो
न मेधया न बहुना श्रुतेन । यमेवैष वृणुते तेनैव लभ्यः
तस्यैषात्मा वृणुते तनुं स्वाम् ॥ अर्थात्-यह ब्रह्म प्रवचन से लभ्य नहीं है न अपनी बुद्धि से ही इसे वश कर सकते हैं। न इस ब्रह्म को वश करने में बहुत पढना लिखना पड़ता है और न अपने वल पर विश्वास रख कर ही कोई इसे प्राप्त कर सका है। जिस