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१८६ श्रीमद्वल्लभाचार्य स्मृति और पुराण सत्य कहते हैं उसे हम असत्य नहीं कह सकते।
जीव, ईश्वर और जगत् ये व्यवहारदशा में ही सत्य हैं यह कहने से उन का स्वरूप ही नष्ट हो जाता है । जो ईश्वर परमार्थ दशा में सत्य न होता तो उस का भजन करने से अथवा उस की उपासना करने से कोई भी लाभ नहीं हो सकता था। फिर भक्ति और श्रद्धा के दृढ होने का भी कोई उपाय नहीं था।