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ब्रह्मवाद के सूत्र और
उनके अर्थ
१-"ब्रह्म सर्वज्ञ है।"
२-"जीव अल्पज्ञ, अणु और ईश्वर का ही अंश है।" भाष्य-जीव यद्यपि ब्रह्म का ही अंश है तथापि जब वह जीवलोक में आता है तथा जब जीव प्रत्यक्ष रूप से ब्रह्म से अलग होता है तब वह यहां 'जीवभूत' कह लाता है और उस में नाना प्रकार के दोष आ जाते हैं । जीव ब्रह्म का ही एक अंश है तथापि वह अपने अंशी को देखने में असमर्थ है । क्यों कि ब्रह्म तिरोभूत हो कर स्थित है । जिस प्रकार वायु सर्वत्र व्याप्त है तथापि वह गर्मी को तब तक दूर नहीं कर सकती जब तक पंखा अथवा ऐसे ही और साधनों द्वारा उस का अनुभव न करें । इसी प्रकार ब्रह्म भी, जब जीव की अविद्याका नाश हो जाता है और जब वह दोष निवृत्त हो जाता है, तब उसका ज्ञान ब्रह्म को प्राप्त हो सकता है । श्रुति में भी कहा है-ब्रह्मविदाप्नोति परम् । तदेषाभ्युक्ता। सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म । यो वेद निहितं गुहायां । परमे व्योमन् । सोश्नुते