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और उनके सिद्धान्त।
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उत्पत्ति हुई है वह भिन्न २ प्रकार से केवल ब्रह्म ही है इस लियें ब्रह्म के सदृश ही वह सत्य है । ___ जगत् ब्रह्म से अलग नहीं है इसी को बताते हुए ब्रह्मसूत्र में भी कहा गया है
तदनन्यत्वमारंभणशब्दादिभ्यः'। अर्थात्-ब्रह्म से अनन्यत्व (एकता) जगत् को सिद्ध है। क्योंकि 'वाचारम्भणम्' इत्यादि श्रुतिओमें ब्रह्म से जगत् भिन्न नहीं है यह कहा गया है। ___ जगत् को असत्य मानना यह तो आसुरीसंपत्वालों का कर्तव्य है । श्रीमद्भगवद्गीतामें भगवान् ने स्पष्टरीत्या कहा है
'असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम् ।
अर्थात्-वे आसुर जीव जगत् असत्य है यह कहते हैं कितने ही कहते है जगत स्थिति विना का है और कितने ही कहते हैं जगत् का ईश्वर कोई नहीं है । अतः जगत् को असत्य मानना विचारशीलों का मन्तव्य नहीं है । चैष्णव जगत् को सत्य मानते हैं।
जिस प्रकार जीव ब्रह्म का एक अंश है उसी प्रकार पृथ्वी जल वायु आकाशादि मी ब्रह्म से ही उत्पन्न हुए हैं। जगत् ब्रह्म से उत्पन्न हुआ है इस विषय में मुण्डकोपनिषद् में कहा है