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________________ १८० श्रीमद्वल्लभाचार्य और उनके वाक्यों को भी हमें सत्य मानना पड़ेगा। अन्यथा यदि हम जगत् को मिथ्या मानेंगे तो जगत् स्थित समस्त पदार्थ यहां तक कि वेद, शास्त्र, गुरु तथा उनके पवित्र और सत्य वाक्यों को भी हमें मिथ्या मानना पडेगा। तो फिर ऐसे असदुपदेश से सद्प ब्रह्म की सिद्धि कैसे हो सकती है ! ऐसे अनेक विचार हैं जिनके द्वारा जगत् को मिथ्या मानने में दोष आता है। जगत् की सत्यता का प्रतिपादन करने वाला एक मनोहर और सुन्दर दृष्टान्त छान्दोग्योपनिषद् के छठे प्रपाठक में आया है । वह यहां पर लिखा जाता है। ___ महात्मा उद्दालक का पुत्र श्वेतकेतु अपनी प्रथम यौवनावस्था में बड़ा अपढ़ था। शुद्ध ब्राह्मण कुल में पैदा होकर भी वह ब्राह्मणोचिताचरणों से शून्य था । पिता को इस की इस दशा पर बडा दुःख हुआ और एक समय मुनि ने इसे पास बुलाकर कहा 'वत्स ! आज से तू ब्रह्मचर्य धारण कर विद्याभ्यास कर । अपने कुल में अभी तक ब्रह्मबंधु या विद्या हीन कभी कोई नहीं हुआ है । इस लिये तुझे भी आचारनिष्ठ और विद्वान् होना योग्य है। पिता का यह उपदेश श्रवण कर श्वेतकेतु को ज्ञान हुआ और अपनी अवस्था पर एका एक बडी लजा उत्पन्न हुई । उस समय उस की अवस्था थोडे वर्ष की थी किन्तु
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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